भगवान गणेश जी की पूजा मे तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता
क्या आप जानते है कि बुध ग्रह का पूज्य पौधा तुलसी है और केतू को इमली माना जाता है, और ये दोनों ही ग्रह
6 ठे भाव के मालिक हैं हाँ एक फर्क जरूर है कि यह भाव बुध का अपना है और केतू इस भाव के कारक हैं,
लेकिन आपको जानकार आश्चर्य होगा कि जन्म कुंडली मे बुध और केतू के योग को भी अच्छा नहीं माना जाता है, केतू ग्रह के इष्ट देव भगवान गणेश जी हैं और भगवान गणेश जी की किसी भी पूजा मे तुलसी का प्रयोग नहीं
किया जाता है।
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आपको और साधारण भाषा मे कहें तो बुध यदि फूल है तो केतू फल है अब आप स्वयं सोचकर देखिये कि फूल के बिना तो फल ही नहीं आ सकता है, यदि जीवन मे कोई स्त्री न हो तो नया जीवन कैसे आएगा, लेकिन फिर भी
बुध और केतू का संयोग कुंडली मे भी अच्छा नहीं होता है, और भगवान गणेश जी को पूजा मे तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाएँ जाते हैं, आइए इस कहानी के माध्यम से जानते हैं कि ऐसा क्यो होता है। Ganesh Pooja
भगवान भोले नाथ जी और माँ पार्वती जी की प्रथम संतान भगवान गणेश जी ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्रण
लिया हुआ था, एक बार भगवान गणेश जी तपस्या मे लीन थे उनका तेज प्रभाव सूर्य के समान शक्तिशाली हो रहा था, इससे प्रभावित होकर तुलसी जी ने उनके सामने अपने विवाह का प्रस्ताव उनके सामने रखा, लेकिन भगवान गणेश जी अपने चेहरे जो की उनके जन्म के समय के उपरांत जो घटना हुई थी उससे उन्होने हाथी का सिर जो लगाया था उससे उन्हे यह लगता था कि उनसे कोई स्त्री विवाह नहीं करेगी, और दूसरा उनका ब्रह्मचारी रहने का अटूट प्रण जिसके कारण उन्होने तुलसी जी से विवाह करने के प्रस्ताव को बहुत ही आदर पूर्वक मना कर दिया जिससे तुसली जी नाराज हो गईं और उन्होने गणेश जी को 2 पत्नियां होने का श्राप दिया।
भगवान गणेश जी बहुत धैर्यशील और समझदार देवता माने जाते हैं और उनके पास तर्क करने का बहुत अच्छा
विवेक है, भगवान गणेश जी बिना किसी का दिल दुखाए हुये सब सच ही बोलते हैं, और चाहे कोई कैसा भी क्यों न हो सभी को उचित सम्मान देते हैं और कहते हैं कि कभी किसी को ऐसी वाणी ना बोलें चाहे वो सच ही क्यों न हो कि जिसे सुनने के बाद उसका दिल दुखे। Ganesh Pooja
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इसीलिए उन्होने अपना पक्ष रखते हुये माफी मांगकर उन्हे भी श्राप दिया कि वो पौधे मे परिवर्तित हो जाएँ तथा
उनके पत्ते और उनकी कोई भी चीज गणेश जी की यानि मेरी पूजा मे शामिल नहीं होगी, इतने पर भी गणपती जी का क्रोध शांत नहीं हुआ था तो उन्होने तुलसी को असहनीय दुख भी सहने का श्राप दिया था, इसीलिए तुलसी जी पर जब काले-काले कीड़े लगते हैं तो उन्हे बहुत तकलीफ होती है, जिसे मंजर कहते हैं।
अब श्राप तो दोनों का एक दूसरे को लगा तो भगवान गणेश जी का विवाह रिद्धी-सिद्धि से हुआ और तुलसी जी
के पत्ते गणपती पूजा मे वर्जित हैं।
नोट:- अब आपको ज्योतिष के महत्व से एक बात और समझाता हूँ कि जिस भी जातक की कुंडली मे केतू देव
नीच होते हैं वो लोगों को कड़वा सच बोल बोलकर अपना दुश्मन बना लेता है, और ऐसा जातक स्वयं तो गलती
करता है लेकिन दूसरों को समझाता रह जाता है, जिसके कारण उसका मान-सम्मान बहुत तेजी से खराब होता
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रहता है, और खून मे केतू की बीमारियाँ लाग्ने लग जाती है जैसे शुगर, खून मे कैंसर, या फिर reproductive
ऑर्गन मे बीमारियाँ लग जाती हैं, इसीलिए चाहे आपकी जन्म कुंडली मे केतू देव किसी भी हालत मे क्यों न हो
हमे आपको कभी भी इतना सच बोलने की आदत भी न पड़ी हो कि हमारे सच बोलने के कारण सामने वाले को
बहुत बुरा लगने लगे और बीमारियाँ हमे लगें, इसीलिए सच हमेशा और जरूर बोलें लेकिन अच्छे मीठे शब्दों मे ही बोलें।
दूसरी बात यह कि हमेशा अपनी बात पर अटल रहने से केतू अच्छा होता है, और जिसका केतू अच्छा होता है उसे राहू का अच्छा फल मिलता है जिसके कारण ऐसे जातक का नाम बहुत दूर-दूर तक फैलता है, और मान-सम्मान
भी कभी कम नहीं होता है, ऐसे जातक की शादी चाहे हो या न हो लेकिन उसे फिर भी संतान का सुख चाहे
रिश्तेदारों की ही संतान हों अपने अभिभावक की तरह सम्मान देती हैं।